अरस्तु के परिवार,संपत्ति और दासता संबंधी विचारों

अरस्तु के परिवार,संपत्ति और दासता संबंधी विचारों 
अरस्तु परिवार संस्था को मानव जीवन के लिए स्वाभाविक आवश्यक और उपयोगी मानता है और लिखता है कि परिवार विकसित समुदायों में सबसे प्रमुख समुदाय है।जो मनुष्य द्वारा अपने दैविक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संगठित किया जाता है अरस्तु के अनुसार परिवार एक प्राकृतिक संस्था है जिसका अस्तित्व व्यक्ति की कामवासना संतानोत्पत्ति प्रेम त्याग और अन्य प्रवृत्तियों के साथ जुड़ा हुआ है। परिवार का आधार विवाह है। जो अपने आप में एक पवित्र संस्था है परिवार राज्य का आधार और राज्य की ही भांति प्राकृतिक है। ऐतिहासिक दृष्टि से परिवार ने ही राज्य की उत्पत्ति को संभव बनाया है अरस्तू प्लेटो के समान स्त्री-पुरुष की समानता में भी विश्वास नहीं करता उसके अनुसार पुरुष का विशेष आदेश देना और स्त्री का विशेष गुण आदेश का पालन करना है। इस दृष्टि से वस्तु के परिवार मिस्त्री का कार्य पुरुष के आदेश का पालन करना है। अरस्तू बेटों की तुलना में रविवार को एक दूसरे से भिन्न मानता है वह कहता है। कि राज्य के अंतर्गत शासन और शासित के रूप में केवल एक ही प्रकार संबंध होता है। लेकिन परिवार में तीन प्रकार के संबंध होते हैं पति-पत्नी पिता पुत्र और स्वामी तथा दास का संबंध अरस्तु परिवार और विवाह संस्था को उपयोगी मानते हुए इन्हें बनाए रखने का समर्थक है। लेकिन अरस्तु स्वस्थ संतानों की उत्पत्ति के लिए विवाह का राज्य द्वारा नियम अनावश्यक समझता है। स्त्री और पुरुष की आयु में 20 वर्ष के अंतर को उचित मानता है। उसका विचार है कि विवाह के समय स्त्री की आयु 18 वर्ष की आयु 37 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए। इसी प्रकार संतानोत्पत्ति के लिए पुलिस की अधिकतम आयु 70 वर्ष स्त्री की अधिकतम आयु 50 वर्ष मानी जा सकती है। उसका कहना है। कि आवश्यकता से अधिक जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए राज्य को कानून बनाने का अधिकार होना चाहिए।संतान के जन्म को रोकने के लिए गर्भपात का आश्रय लिया जाना चाहिए।संतानों का पालन पोषण राज द्वारा प्रतिबंधित होना चाहिए परिवार और विवाह से संबंधित कुछ विशेषता परिवार नियोजन आदि के संबंध में अरस्तु का दृष्टिकोण वैज्ञानिक लगता है। लेकिन विवाह संबंध स्थापित करने और संतान उत्पत्ति के संबंध में चिकित्सक के निर्देश और अन्य नियमों की विस्तृत व्याख्या अरस्तु द्वारा की गई है। वह निश्चित रूप से व्यावहारिक है और अरस्तू के संबंध में या कहा जा सकता है। कि उसने परिवार विवाह संस्था और पति पत्नी के भाव आत्म को अनदेखा कर दिया है।

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